रक्षाबंधन – त्योहार, महत्व , मुहूर्त एवं पूजन विधि …. रक्षाबंधन किस दिन मनाएँ – ११ अगस्त या फिर १२ अगस्त को होगा रक्षा बंधन,,,, !!

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रक्षाबंधन – त्योहार, महत्व , मुहूर्त एवं पूजन विधि 
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रक्षा बंधन का यह पर्व भाई एवं बहन के असीम प्रेम एवं सौहार्दय का त्योहार है, जहाँ बहन अपने भाई की रक्षा एवं लम्बी उम्र के लिए कामना करती है वही भाई भी बदले में उसकी हर प्रकार से रक्षा करने का प्रण करता है। बहन के इस रक्षा सूत्र का मान रखते हुए उसे उपहार देता है। 
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भाई बहन के प्रेम से सरोबार रक्षाबंधन का त्योहार इस वर्ष शास्त्र अनुसार किस दिन मनाया जाएगा एवं उसकी पूजन विधि क्या होगी, भद्रा का क्या रुख़ रहेगा, इन सभी की सम्पूर्ण जानकारी इस ब्लॉग द्वारा विवरण किया हुआ है।
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रक्षा बंधन तिथि एवं मुहूर्त :
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शुभ मुहूर्त :
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इस वर्ष पूर्णिमा तिथि दो दिन यानी की ११ एवं १२ अगस्त को विद्यमान है एवं भद्रा भी पूर्णिमा तिथि के साथ शुरू हो रही है जो की ११ अगस्त को लगभग पूरे दिन में विद्यमान रहेगी। चूँकि रक्षा बंधन का त्योहार पूर्णिमा तिथि में मनाया जाता है तो जनमानस में असमंजस की स्तिथियाँ बन रही हैं की इनमे से किस दिन रक्षा सूत्र  को बंधा जाए एवं रखी के पवन पर्व को मनाया जाए। 
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पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ – अगस्त 11, 2022 को  प्रातः 10:38 बजे
पूर्णिमा तिथि समाप्त – अगस्त 12, 2022 को प्रातः 07:05 तक 
 
१२ अगस्त को सूर्योदय का समय : प्रातः ५:४८ मिनट पर। 
अहो रात्रि पूर्णिमा ११ की रात को रहेगी एवं पूर्णिमा का व्रत भी ११ अगस्त को रखा जाएगा।
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मुहूर्त चिंतामणि, धर्म सिंधु एवं निर्णय सिंधु शास्त्र के निम्न श्लोक, उदया तिथि के बारे में लिखते हैं :
 
“पूर्णिमायाँ भद्रा रहितायाँ, त्री मुहूर्ताधिको दव्यपिनीयाम 
 अपराहने वा कार्यम !
 उदय त्री मुहूर्त न्यूनतवे पूर्वेधु भद्रा रहिते ;
 प्रदोषादी काले कार्यम तत्सतवे तू रात्रिवपि तदंते कुर्यात!!”
 
 
उपरोक्त मंत्र के अनुसार अगर उदया तिथि तीन मुहूर्त से अधिक है तो उस दिन में अपराह्न ( दोपहर) रक्षा सूत्र बांधा जा सकता है, लेकिन अगर तीन मुहूर्त से कम है तो पिछले दिन, भद्रा रहित प्रदोष काल एवं रात्रि को रक्षा सूत्र बांध सकते हैं। 
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यानी की उदया तिथि के नियम अनुसार, सूर्योदय के पश्चात कम से कम तीन मुहूर्त ( एक मुहूर्त लगभग ४८ मिनट का होता है) तक  तिथि का वास होना चाहिए तभी उस दिन तिथि मान्य होगी।
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१२ अगस्त को सूर्योदय ५:४८ मिनट पर होगा एवं पूर्णिमा तिथि ७:०५ मिनट पर ख़त्म हो जाएगी, मतलब तिथि केवल १:१७ मिनट तक तिथि उदय काल में रहेगी जो की २:२४ मिनट से कम है। इस नियम अनुसार तीन मुहूर्त से पहले पूर्णिमा तिथि समाप्त हो जाएगी एवं इस दिन यानी की १२ अगस्त को पूर्णिमा तिथि को नहीं मनायी जाएगी।  
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वैसे अपराह्न ( दोपहर के बाद का समय) का समय रक्षा बन्धन के लिये अधिक उपयुक्त माना जाता  है पर यदि अपराह्न के समय भद्रा लगी हुई हो तो वह उपयुक्त नहीं मानी जाती है। इसके बदले आप प्रदोष काल का समय भी रक्षा बन्धन के संस्कार के लिये उपयुक्त माना जाता है।

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रक्षा बन्धन के लिये प्रदोष काल का मुहूर्त – ११ अगस्त, रात्रि 08:51 से रात्रि 09:13 तक 

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भद्रा विचार :

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इदं भद्रायां  ना कार्यम!
भद्रायां द्वे कर्तव्ये श्रावणी फाल्गुनी तथा 
श्रावणी नृपतीं हंतिं, ग़्रामं  दहती फाल्गुनी!!
 
– (धर्म सिंधु एवं निर्णय सिंधु शास्त्र ) 
 
यानी की अगर भद्रा का वास हो तो श्रावणी पूर्णिमा में रक्षा सूत्र एवं फाल्गुनी पूर्णिमा को होलिका दहन नहीं करना चाहिए, ऐसा श्रवण माह में करने से राजा की हानि होती है एवं फाल्गुन में होलिका दहन करने से गाँव का विनाश होता है। 
वैसे तो पूर्णिमा तिथि में शुरुआत में भद्रा का वास रहता है पर चूँकि पूर्णिमा तिथि सुबह १०:३८ मिनट से शुरू हो रही है तो भद्रा भी १० :३८ मिनट से शुरू होकर लगभग पूरे दिन रहेगी।
रक्षा बन्धन भद्रा अन्त समय – 08:51 पी एम
रक्षा बन्धन भद्रा पूँछ – 05:17 पी एम से 06:18 पी एम
रक्षा बन्धन भद्रा मुख – 06:18 पी एम से 08:00 पी एम
 

भद्रा अग़र  स्वर्ग या पाताल में विचरण कर रही हो तो शुभ परिणाम देती है लेकिन अगर मृत्यु लोक यानी की धरती पर विचरण कर रही हो तो अशुभ मानी जाती है एवं इस समय किसी भी शुभ कार्य को करना वर्जित माना जाता है।

११ अगस्त को चंद्रमा मकर राशि में विचरण कर रहा है तो इस वर्ष भद्रा मकर राशि में वास करेगी एवं पाताल लोक में रहेगी तो शुभ फल देगी।लेकिन धर्म सिंधु के विचार से रक्षाबंधन के दिन भद्रा के समय रक्षा सूत्र नहीं बाँधना चाहिए। 

, हालाँकि किसी भी दिन में शुभ कार्य करने के लिए अभिजीत मुहूर्त सबसे श्रेष्ठ मुहूर्त होता है एवं इस मुहूर्त में किसी भी प्रकार का दोष नहीं लगता, एवं इस समय सभी शुभ कार्य सम्पन्न कर सकते हैं। 

अभिजीत मुहूर्त : १२:०६ मिनट से १२:५८ मिनट तक ( ११ अगस्त दिन में) 

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इन सभी नियमो को ध्यान में रखें तो रक्षा बंधन को ११ अगस्त को मनाना ही उचित रहेगा एवं आप अपने भाई को एवं परिवार जनों को रक्षा सूत्र आप प्रदोष काल में बांध सकते हैं।

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रक्षा बन्धन के लिये प्रदोष काल का मुहूर्त –  ११ अगस्त २०२२, रात्रि 08:51 से रात्रि 09:13 तक । इस समय रक्षा सूत्र बाँधना विशेषकर फल दायी होगा। 

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उत्तर भारत के कई प्रदेशों में जैसे की पंजाब एवं हरियाणा में प्रातः काल ही रक्षा सूत्र बांधा जाता है, ऐसे में आप १२ अगस्त को प्रातः ७:०५ से पहले रक्षा सूत्र बांध सकते हैं। 

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रक्षा सूत्र बाँधने की विधि :
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एक थाल को रोलि, चंदन, अक्षत से सजायें, उसमें एक घी का दीपक प्रज्वलित करें, धूप, फूल, मिठाई आदि को भी थाल में रखें। साथ ही में रक्षा सूत्र यानी की मौलि या फिर राखी को भी रखें। सबसे पहले प्रातः काल स्नान आदि कर शुद्ध होकर, ईश्वर के समक्ष एक उपरोक्त सजी हुई थाल, मौलि आदि रखें। षोडशोपचार  द्वारा प्रभु का पूजन करें एवं उन्हें मौलि बांधे ताकि आपके परिवार में उनकी कृपा हमेशा बनी रहे। उसके बाद  उनसे प्रार्थना करें की इस रक्षा सूत्र / राखी  में उनका आशीर्वाद बसे ।
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 उसके बाद भाई को सामने पूर्व मुखी बैठा कर , भाई की दीर्घायु की कामना करते हुए ईश्वर से प्रार्थना करें की वह हर समय आपके भाई की रक्षा सभी विपत्तियों  से करे। भाई को आरती दिखाएँ एवं मन ही मन प्रार्थना करें की इस दिए की रोशनी से आपके भाई के जीवन का समस्त अंधकार नष्ट हो जाएँ एवं केवल ईश्वर की ज्योति उनके चारों तरफ़ बसे।
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फिर रोलि अक्षत से उनका टीका करें, उसके बाद कलाई में मंत्र पड़ कर राखी बाँधें । अंत में भाई मिठाई खिलायें एवं  ईश्वर को भी अपने भाई की रक्षा करने के लिए धन्यवाद दें। उसके पश्चात भाई भी अपनी बहन को उसकी इस प्रार्थना के बदले में कोई उपहार देता है।
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रक्षा सूत्र बाँधते समय निम्न मंत्र पड़ें :
 
” येन बद्धो बलि: राजा, दानवेंद्रो महाबल: , 
  तेन त्वामपी बध्नामी रक्षे मा चल मा चल 
  प्रार्थाया महे भव शतायु : , ईश्वर सदा तवाम रक्षतु,
  पुण्य कर्मणा कीर्ति मार्जय, जीवम ताव भवतु सार्थकम !!”
 
 
रक्षा बंधन का पौराणिक महत्व : 
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श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि को रक्षा सूत्र बाँधने का यह पर्व प्राचीन काल से चला आ रहा है। इसका वर्णन कई वैदिक ग्रंथों मिलता भी है। 
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इस दिन समुद्र की पूजा का विधान है एवं सभी पावन नदियों में स्नान कर तन, मन एवं बुद्धि की शुद्धि की जाती है। ऋषि-मुनियों के उपदेश की पूर्णाहुति भी इसी दिन होती थी। इस दिन गुरु अपने शिष्यों को रक्षा सूत्र बाँधते थे एवं उनके मानसिक, शारीरिक, एवं उनकी आत्मा शुद्धि का आशीर्वाद अपने शिष्यों को देते थे। 
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ऋषियों द्वारा बांधा जाने वाला रक्षा सूत्र : 
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ऋषिवर , राजाओं के हाथों में भी रक्षासूत्र बाँधते थे ताकि राजा किसी भी प्रकार की हानि से बचें एवं अपने प्रजा की रक्षा करें। । इसी प्रथा को आगे बड़ते हुए, आज भी भारत के विभिन्न प्रदेशों में ब्राह्मण अपने यजमानों को राखी बाँधने उनके घर जाते हैं एवं मंत्रोचारण  के साथ रक्षा सूत्र समस्त परिवार को बांधा जाता है।  भारत में चूँकि प्रकृति को जीवन का रक्षक माना गया है इसीलिए कई स्थानों में वृक्षों एवं पेड़ पौधों में भी रक्षा सूत्र को बाँधने की प्रथा है।
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इन्द्राणी के तेजस्वी रक्षा सूत्र ने दिलवायी थी देवताओं को विजय  : 
 
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“भविष्य पुराण” के अनुसार देवों और दानवों के युद्ध में जब देवता हारने लगे, तब उन्होंने देवराज इंद्र से गुहार लगाई, सभी देवगणो  को ऐसा भयभीत देख कर देवराज इंद्र की पत्नी  इंद्राणी ने उनके हाथों में रक्षासूत्र बाँध दिया। इन्द्राणी की तपस्या के तेज़ से युक्त इस रक्षा सूत्र ने देवताओं को असीम शक्ति प्रदान की एवं देव गणो ने दानवों पर विजय प्राप्त की। 
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श्री कृष्ण एवं द्रौपदी के रक्षा सूत्र की किवदंति  : 
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इसका एक वर्णन “महाभारत” में भी मिलता है, ऐसा माना जाता है की शिशुपाल का वध करते समय  श्री कृष्ण की तर्जनी ऊँगली में चोट आ गयी एवं रक्त बहने लगा, यह देख द्रौपदी ने तुरंत अपनी ओड़नी के किनारे को फाड़ कर कृष्ण की ऊँगली में बांधा ताकि रक्त का रिसाव रुक सके। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा थी,  तत्पश्चात श्री कृष्ण ने उन्हें बहन माना एवं कहा कि मैं आपके इस आचरण का कृतज्ञ हूँ एवं उन्होने द्रौपदी को वचन दिया की समय पड़ने पर वह भी उनके एक-एक सूत का क़र्ज़ उतारेंगे। 
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महाराज बलि एवं माता लक्ष्मी : 
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महाराज बलि बहुत बलशाली थे एवं उन्होंने समस्त लोकों में अपना राज फैला लिया था, जब ऐसा हुआ तो समस्त देवताओं ने भगवान विष्णु का आवाहं  किया एवं उनके इस आग्रह पर भगवान विष्णु ने वामन अवतार द्वारा राजा बलि को हराया। अपनी भक्ति से विष्णु जी का दिल जीतने वाले बाली ने उनसे आग्रह किया की आप हमेशा मेरे सामने रहिए, भगवान विष्णु के वरदान से ऐसा ही होने लगा । यह देख माता लक्ष्मी बहुत चिंतित हुईं, नारद मुनि के कहने पर, श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि को उन्होंने  राजा बलि को रक्षा सूत्र बांधा एवं उन्हें अपना भाई बनाया। बहन के आग्रह पर महाराज बलि ने विष्णु जी को अपने प्रण से मुक्त किया एवं वह माता लक्ष्मी के साथ वापस बैकुंठ लोक में जा पाए। ऐसा माना जाता है की तभी से रक्षा बंधन के पवन पर्व की शुरुआत हुई थी। 
 
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रक्षा बंधन का महत्व : 
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ऐसा माना जाता है की रक्षा बंधन में जब बहन भाई की कलाई में रखी बाँधती है तो उस भाई की उम्र लम्बी होती है,  उसके ऊपर आने वाली किसी भी प्रकार की विपदाओं का नाश होता है, एवं भूत प्रेत, बीमारी, अकाल मृत्यु आदि बाधाओं से उसके भाई की रक्षा होती है। इस रक्षा सूत्र के प्रभाव से भाई को बल, बुद्धि एवं वैभव की प्राप्ति होती है। 
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बहन की ऐसी प्रार्थना पर , भाई भी अपनी बहन को वचन देता है की वह भी उसपर आने वाली किसी भी आपदा से उसकी रक्षा करेगा। यह पर्व भाई एवं बहन दोनो के ही आपसी प्रेम का प्रतीक है जहाँ दोनो एक दूसरे की उन्नति एवं रक्षा की कामना करते हैं। 
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~नन्दिता पाण्डेय 
ज्योतिर्विद, आध्यात्मिक गुरु।
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