९ अप्रैल से १७ अप्रैल तक रहेगी चैत्र नवरात्रि २०२४ … किस दिन माँ के कौन से रूप की करें पूजा, किस दिन कौन सा रंग पहन कर, कौन सा भोग माँ को लगाएँ

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चैत्र नवरात्रि, महत्व, पूजन विधि एवं मुहूर्त, उपाय 

९ अप्रैल २०२४  को चैत्र प्रतिपदा के साथ ही  नव संवत्सर २०८१ की शुरुआत भी होगी जो की सनातन धर्म में नव वर्ष के रूप में भी मनाया जाता है। ९ अप्रैल  से शुरू होने वाला संवत्सर, ‘ कालयुक्त’ नामक संवत्सर माना जाएगा। इस संवत्सर के राजा मंगल एवं मंत्री शनि रहेंगे।

चैत्र प्रतिपदा से चैत्र नवरात्रि की शुरुआत होगी जिसका समापन १७ अप्रैल २०२४  रामनवमी को होगा।

इस नव वर्ष का क्या रहेगा आने वाले वर्ष में असर इसे में दूसरे ब्लॉग में वर्णित करूँगी, हालाँकि यह भी सत्य है की पिछले कुछ  नव संवत्सरों के ब्लॉग में जो भी लिखा वह सत्य साबित हुआ चाहे फिर कोरोना जैसी महामारी हो या फिर जनमानस का गवर्न्मेंट/ सरकार के साथ विरोध ( किसान आंदोलन), रुस यूक्रेन विवाद की वजह से तृतीय विश्व युद्ध होगा या नहीं होगा यह सब सत्य साबित हुए ।

9 अप्रैल 2024 को शुरू हो रही हैं चैत्र नव रात्रि :

चैत्र नवरात्रि महत्व एवं विधान : 

चैत्र प्रतिपदा का महत्व पूरे जंबूद्वीप यानी की भारतवर्ष में धूम धाम से मनाया जाता है। विभिन्न प्रदेशों में इसे विभिन्न रूपों में मनाया जाता है एवं हर सामाजिक तबके में इसका एक विशेष महत्व है।

इसी दिन को महाराष्ट्र में गुडी पड़वा के रूप में मनाया जाता है एवं इसी दिन दक्षिण में इसे उगादि (ugadi) के रूप में मनाया जाता है। हिन्‍दू विक्रम संवत्सर के अनुसार हर वर्ष चैत्र (Chaitra) महीने के शुक्ल पक्ष के पहले दिन से ही नव वर्ष की शुरुआत हो जाती है. साथ ही इसी दिन से चैत्र नवरात्रि (Chaitra Navaratri 2024) भी शुरू हो जाते हैं.

चैत्र शुक्ल प्रतिपदा कई मायनो में बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है,

चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य ने शकों पर विजय प्राप्त कर इसी दिन प्रथम कैलेंडर ‘विक्रम सम्वत्’ की स्थापना की थी।सम्राट विक्रमादित्य का शासन भारत, उत्तरी छोर में चीन, कोरिया तक, उत्तरी पश्चिम में  ईरान, इराक़, पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान, मिस्र, टर्की से रोम तक, वहीं पर अफ़्रीका से लेकर,  दक्षिणी पूर्व  छोर में बांग्लादेश,  इंडोनेशिया , लंका तक फैला हुआ था।उनके युग को एक स्वर्ण युग की तरह देखा जाता रहा है। ऐसा माना जाता है की उनके युग में प्रजा सर्वोत्तम मानी जाती थी एवं उन्होंने अपनी प्रजा के समस्त क़र्ज़ों को माफ़ कर दिया था।

पौराणिक महत्व :

ब्रह्मा जी ने सृष्टि का निर्माण भी इसी दिन किया था। प्रभु राम एवं युधिष्ठर  का राज्याभिषेख  भी इसी दिन किया गया था। भगवान विष्णु का मत्स्य अवतार भी इसी दिन माना जाता है। महर्षि दयानंद ने आर्य समाज की स्थापना भी इसी दिन की थी, संत झूलेलाल की जयंती भी इसी दिन मनायी जाती है।

नवरात्रि का महत्व:

नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा (Durga) के सभी नौ रूपों की पूजा की जाती है. पूरे वर्ष में चार नवरात्रि होती हैं, जिनमें दो गुप्त नवरात्रि होती हैं जो तांत्रिक सिद्धि के लिए मुख्यतः मानी जाती हैं एवं दो सामाजिक रूप से मनायी जाने वाली नवरात्रि होती हैं जिन्हें चैत्र के महीने में एवं शरद नवरात्रि के रूप में धूम धाम से मनाया जाता है।

इन पूरे नौ दिन, संसार में देवी शक्ति का संचार अत्यधिक रूप में रहता है एवं उनकी उपासना से साधक के जीवन में धन धान्य, सुख समृद्धि एवं परिवार में ख़ुशहाली सभी बड़ती है। शत्रुओं का हनन होता है एवं किसी भी प्रकार के नज़र दोष, भूत-प्रेत, तंत्र मंत्र का असर आदि से भी मुक्ति प्राप्त होती है।  इन पूरे नौ दिनो में माँ  के नौ स्वरूपों के पूजन का विधान है।

इस बार चैत्र नवरात्रि की शुरुआत ९ अप्रैल  , मंगलवार को अश्विनी नक्षत्र  से हो रही है, एवं इसका समापन १७ अप्रैल  को राम नवमी के साथ होगा।  इस नवरात्रि को कई शुभ संयोग बन रहे हैं। ९ अप्रैल को सर्वार्थ सिद्ध योग रहेगा। इस पूरे दिन अमृत सिद्धि योग भी बन रहा है।

प्रतिपदा तिथि की शुरुआत : ८ अप्रैल रात्रि ११:५० से शुरू ,  

प्रतिपदा स्तिथी की समाप्ति : ९ अप्रैल रात्रि ८:३० तक। 

उदया तिथि ९ अप्रैल को होने से नवरात्रि ९ अप्रैल २०२४ से शुरू होगी। 

इस वर्ष माँ घोड़े पर सवार होकर आएँगी । माँ के घोड़े पर सवार होकर आने से जीवन में उठप पटल का सामना करना पड़ सकता है एवं समाज में उपद्रव, आंतरिक द्वेष एवं आरोप प्रत्यारोप की सम्भावनाएँ बड़ जाती हैं। 

नवरात्रि की पूजा-विधि:

घट स्थापना मुहूर्त : ९ अप्रैल २०२४ को प्रातः काल 6:02 am – 10:16 am 

अभिजीत मुहूर्त : 11:47 am – 12:48 pm ( 9 April 2024)

नवरात्रि में प्रथम दिन, शुभ  मुहूर्त में कलश स्थापना की जाती है, किसी मिट्टी के पात्र में जौ बोए जाते हैं।

नवग्रहों के साथ षोडश मात्रिकाओं एवं समस्त देवी देवताओं का आवहन कर पूजन किया जाता है। अखंड ज्योति जलायी जाती है एवं माँ  के नौ रूपों का विधिवत पूजन किया जाता है। यह समय साधना के लिए सर्वोत्तम रहता है। माँ के नवार्ण  मंत्र का पूजन विशेषकर किया जाता है। दुर्गा सप्तशती का पाठ करें।

प्रतिपदा के दिन कलश स्थापना से पूर्व , भगवान गणपति का स्मरण कर उनका आवाहन करें फिर उसके पश्चात् निम्न मंत्र का उच्चारण कर माँ  का आशीर्वाद लेकर नवरात्रि पूजन की शुरुआत करें :

 “ॐ जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु‍ते।।” 

कलश स्थापना विधि :

एक कलश लें , उसके कंठ में मौली बांध दें, कलश के ऊपर भगवान विष्णु जी का, मध्य में रुद्र का एवं तले में ब्रह्मा जी का वास माना जाता है। कलश में स्वस्तिक एवं ॐ चंदन या रोली से लिखें। फिर कलश में  कंठ तक जल भर दें, उसमें थोड़ा सा गंगाजल भी डाल दें। उसके अंदर सुपारी, सिक्के, इत्र , पँच मेवा, इलाइची, लौंग, गोमती चक्र, कौड़ी आदि डाल दें। कंठ के अंदर पँच पल्लव आम की पत्तियों के या फिर अशोक की पत्तियों के रखें एवं फिर उसके ऊपर एक कटोरी में चावल रख कर मुँह ढक लें। अब एक नारियल जिसमें पानी भरा हो एवं जटा वाला नारियल हो, उसे लेकर उसके ऊपर लाल चुनरी मौली से बांध दें। नारियल को इस प्रकार रखें की उसका मुख आपकी तरफ़ हो।

मिट्टी का एक गोलाकार बड़ा सा पात्र लें उसमें मिट्टी एवं बालू का मिश्रण की परत डाल कर फिर जौं बोने के लिए मिट्टी में डालें।इसके ऊपर फिर मिट्टी की एक परत बिछाएं ।फिर जौं डालें और फिर मिट्टी डाल कर परत बना लें। इस पात्र के बीच में थोड़ा सा अक्षत/ चावल रख कर उस पर उपरोक्त कलश को स्थापित करें। मन ही मन प्रार्थना करें एवं आवाहन करें की समस्त देवी देवता, वरुण आदि देवता इस कलश पर आ कर विराजित हों। हे  गणपति देव आप शिव शक्ति सहित यहाँ विराजित हों।  नवरात्रि के प्रथम दिन एक लकड़ी की चौकी की स्थापना करनी चाहिए । इसको गंगाजल से पवित्र करके इसके ऊपर सुन्दर लाल वस्त्र बिछाना चाहिए । इसको कलश के दायीं ओर रखना चाहिए। उसके बाद माँ भगवती की धातु की मूर्ति अथवा नवदुर्गा का फ्रेम किया हुआ फोटो स्थापित करना चाहिए । इसके सामने ईशान कोण में जल का एक लोटा रखें, एवं आग्नेय कोण की दिशा में दीपक प्रज्वल्लित करें। कलश एवं माता की मूर्ति में माला चड़ाएँ, माता को चुनरी एवं सुहाग का समान चड़ाएँ, धूप दीप, नैवैद्य आदि से सभी देवी देवताओं का आवाहन कर दुर्गा सप्तशती का पाठ आदि करें। 

नवरात्रि के प्रथम दिन ही अखंड ज्योत जलाई जाती है जो नौ दिन तक जलती रहती है । दीपक के नीचे “चावल” रखने से माँ लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है तथा “सप्तधान्य” रखने से सभी प्रकार के कष्ट दूर होते है ।

नवरात्रि के प्रतिदिन गाय के गोबर से बने कंडे की धुनी जलाकर उसमें हवन करना चाहिए। हवन सामग्री में हर दिन के हिसाब से माँ को अर्पित भोजन/ नैवैद्य को अवश्य हवन में डालना चाहिए। इसके अलावा आप घी, हवन सामग्री, तिल, बताशा, लौंग, पान, सुपारी, कर्पूर, इलायची, पंचमेवा, कमलगट्टे से भी हवन कर सकते हैं।

माँ  के नवार्ण मंत्र का जप, माँ के भक्तों को समस्त समस्याओं से मुक्त कराता है। दुर्गा सप्तशती में वर्णन है की माँ ही महामारी का रूप हैं एवं माँ ही उसका निवारण भी हैं। उनकी उपासना से व्यक्ति किसी भी प्रकार की महामारी के संक्रमण से सुरक्षित रहता है।

नवरात्रियों में प्रातः एवं रात्रि को माँ के नवार्ण मंत्र का १०८ बार जप अवश्य करें। 

नवार्ण मंत्र : 

“ॐ ऐँ ह्रीं क्लीं चामुण्डाये नमः “

नवरात्रियों के नौ दिनो में देवी के विभिन्न स्वरूप का पूजन निम्न रूप से किया जाता है।

वर्ष २०२४ में निम्न लिखित अनुसार माँ को उनके निर्धारित दिन में भोग लगाएँ एवं उस दिन के रंग अनुसार वस्त्र पहने तो अधिक शुभता  प्राप्त करेंगे। 

९ अप्रैल  :  प्रथम नवरात्रि  –  माँ शैलपुत्री पूजा ,       भोग – घी ,          ग्रह – चंद्रमा   रंग – लाल   
१० अप्रैल  :  द्वितीय नवरात्र  –  माँ ब्रह्मचारिणी पूजा,  भोग – शक्कर,     ग्रह – मंगल ;  रंग – गहरा नीला    
११ अप्रैल  :  तृतीय नवरात्र  –  माँ चंद्रघंटा पूजा,        भोग – खीर,        ग्रह – शुक्र;    रंग – पीला   
१२ अप्रैल  :  चतुर्थ नवरात्र  –   माँ कुष्मांडा पूजा ,      भोग – मालपुआ   ग्रह – सूर्य ,    रंग -हरा    
१३ अप्रैल  :  पंचमी नवरात्र  –  माँ स्कंदमाता पूजा     भोग – केले          ग्रह – बुद्ध      रंग – ग्रे/ स्लेटी  
१४ अप्रैल  :  षष्ठी नवरात्र  –   माँ कात्यायनी पूजन   भोग – शहद         ग्रह – बृहस्पति    रंग – नारंगी   
१५ अप्रैल :  सप्तमी नवरात्र  –  माँ कालरात्रि पूजन    भोग – गुड़            ग्रह – शनी       रंग – सफ़ेद   
१६ अप्रैल  :  अष्टमी नवरात्रि  -माँ महागौरी पूजन     भोग – नारियल;     ग्रह – राहू    रंग – गुलाबी   
१७ अप्रैल :  नवमी नवरात्र  –  माँ सिद्धिदात्री पूजा,    भोग – तिल/ अनार; ग्रह – केतु    रंग – हल्का नीला  

संधि पूजन समय : १६ अप्रैल २०२४ को दोपहर 12:59 pm – 1:47 pm 

प्रभु श्री राम जयंती/ राम नवमी : 17 अप्रैल 2024 को मनायी जाएगी। 

राम नवमी मध्याहन  मुहूर्त 11:03 am – 1:38 pm

“राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे, सहस्त्र नाम तत् तुल्यम राम नाम वरानने “

चैत्र नवरात्रि की नवमी तिथि को माँ सीतला माता की भी विशेष पूजा की जाती है।कई लोग अष्टमी को कन्या पूजन करते हैं एवं कई नवमी पर बाल कन्याओं की पूजा के साथ नवरात्रि का  उद्यापन करते हैं। एक बालक एवं ९ बाल कन्याओं की पूजा की जाती है , उनके पाँव धोकर उन्हें रोली अक्षत लगाकर, धूप दीप दिखा कर उन्हें नैवैद्य में  हलवा, पूरी, चना आदि भोग लगाकर एवं , गिफ़्ट आदि दे कर  नवरात्र व्रत का उद्यापन किया जाता है।

आप सभी की नवरात्रि  शुभ हो एवं देवी माँ की कृपा से जीवन में सुख सौहार्द प्राप्त हो।

ज्योतिषाचार्या नन्दिता पाण्डेय

#9312711293 , email : soch.345@gmail.com

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