त्रयोदशी तिथि को की जाती है शिव आराधना, जानिए प्रदोष व्रत महत्व और पूजा विधि

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हर महीने त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत किया जाता है. त्रयोदशी तिथि के दिन भगवान शिव की आराधना की जाती है. इस दिन व्रत करने से सभी पाप धूल जाते हैं और चारों धाम दर्शन का पुण्य मिलता है. जब दोनों पहर यानि संध्या के समय जब सूर्य अस्त हो रहा होता है एवं रात्रि का आगमन हो रहा होता है उस प्रहार को प्रदोष काल कहा जाता है.

नई दिल्ली. हर माह की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत मनाया जाता है. कृष्ण पक्ष एवं शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन भगवान शिव की आराधना की जाती है. ऐसा माना जाता है की जो एक वर्ष तक इस व्रत को कर ले तो उसके समस्त पाप धूल जाते हैं एवं चारों धामों के दर्शन का पुण्य मिलता है. प्रदोष काल में इस व्रत की आरती एवं पूजा होती है. संध्या के समय जब सूर्य अस्त हो रहा होता है एवं रात्रि का आगमन हो रहा होता है उस प्रहार को प्रदोष काल कहा जाता है.
त्रयोदशी तिथि में प्रदोष काल में पूजन का विशेष महत्व है. ऐसा माना जाता है की प्रदोष काल में शिव जी साक्षात शिव लिंग पर अवतरित होते हैं और इसीलिए इस वक़्त उनका स्मरण कर, उनका आवाहन कर के पूजन किया जाए तो सर्वोत्तम फल मिलता है. त्रयोदशी तिथि के दिन, समस्त 12 ज्योतिर्लिंगों में बहुत शोभनीय तरीके से भगवान का आरती एवं पूजन होता है. आप घर में रह कर भी प्रदोष काल में शिव परिवार का पूजन अरचन कर सकते है

व्रत की विधि :

प्रातः काल उठ कर स्नान आदि से निवृत होकर, भगवान भोलेनाथ का उनके परिवार के साथ स्मरण करें. इस दिन का व्रत निर्जला व्रत होता है. दिन भर व्रत रख कर संध्या के समय, प्रदोष काल शुरू हों एसे पहले फिर से स्नान कर शुद्ध होएं एवं सफेद वस्त्र या फिर सफेद आसान पर बैठ कर पूजा करनी चाहिए.
एक छोटा सा मंडप बना कर शिव परिवार स्थापित परें. एक कलश में जल भर कर आम की पत्तियों उसमे डाल कर एक जटा वाला नारियल उस पर रखें. गणपति का आवहन करें फिर समस्त देवी देवताओं को पूजा में आने का निमंत्रण दें, तद् पश्चात भगवान भोलेनाथ का आवहन माता पार्वती के साथ करें. भोलेनाथ को पंचामृत का स्नान कराएं, फिर गंगाजल से स्नान कराएं. धूप दीप, चंदन- रोलि, अक्षत, सफेद पुश अर्पित करें. फिर आम की लकड़ी से हवन करें. हवन की आहुति, चावल की खीर से करें, आपकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण अवश्य होंगी. उनका स्मरण कर थोड़ी देर ध्यान अवस्था में बैठ जाएं या फिर महामृत्युंजय का 108 बार जप करें. प्रदोष व्रत की कथा पड़ कर आरती करें. वैसे तो हर महीने दो त्रयोदशी आती हैं, कभी कभी खाल मास की वजह से दो और आ जाती हैं. अलग अलग दिन पड़ने वाली त्रयोदशी को अलग नामों से पुकारा जाता है.
1. सोमवार को पड़ने वाली त्रयोदशी बहुत शुभ मानी जाती है एवं इसे सोम प्रदोष/त्रयोदशी बोला जाता है. इस दिन का व्रत रखने से सभी इच्छाओं की पूर्ति होती है .
2. मंगलवार को पड़ने वाली त्रयोदशी को अंगरकि त्रयोदशी या भौम प्रदोष/त्रयोदशी बोला जाता है. इस दिन व्रत उपवास रखने से सेहत से सम्बंधित परेशानियों से मुक्ति मिलती है.
3. बुधवार को पड़ने वाली त्रयोदशी को सौम्यवारा प्रदोष भी बोला जाता है. ज्ञान प्राप्ति के लिए एवं तेज बुद्धि के लिए इस दिन उपवास अवश्य रखना चाहिए.
4. गुरुवार को पड़ने वाली त्रयोदशी को गुरुवार प्रदोष भी बोला जाता है. इस दिन पितरों का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए विशेषकर पूजन किया जाता है. शत्रु हनन के लिए भी इस दिन का व्रत मान्य है.
5. शुक्रवार को पड़ने वाली त्रयोदशी को भृगुवारा प्रदोष के नाम से पुकारा जाता है. धन धान्य, सुख समृद्धि को प्राप्त करने के लिए इस दिन विशेषकर पूजन किया जाता है.
6. शनिवार को पड़ने वाली त्रयोदशी को शनि प्रदोष के नाम से जाना जाता है. नौकरी से सम्बंधित तकलीफ हो या फिर पदोन्नति चाहिए, शनि प्रदोष का व्रत आपकी इन मनोकामनाओं को अवश्य पूर्ण करेगा.
7. रवि वार को पड़ने वाली त्रयोदशी को भानु प्रदोष के नाम से जाना जाता है. इस दिन उपवास, पूजन आदि करने से दीर्घ आयु की प्राप्ति होती है.

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