Rakshabandhan is falling on the 3rd of August 2020.
It is a festival which is celebrated for the love in between brothers and sisters, in between teacher and disciples and also the Raksha (protective) thread is tied in form of Mauli ( raw colored cotton thread ) by the priest who visits the family in the morning and ties rakshasutra or kalawa or Mauli while chanting mantras to protect the person on whom the thread is being tied upon.
In ancient times the Saints who had Ashrams would tie the Raksha thread to their disciples , chanting mantras , invoking for protection and enlightenment to be bestowed on their disciples.
This year the day Rakshabandhan is being celebration i.e. on 3rd August , there are a number of combinations of beautiful auspicious yogas , which will bless and protect the people celebrating it.
Following are the timings and Muhurts to tie Rakhi :
Aparahana Time : 1:48 pm – 4:29 pm ( very auspicious time)
Pradosh Kaal time 7:10 pm – 9:17 pm
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रक्षाबंधन – त्योहार, महत्व , मुहूर्त एवं पूजन विधि
रक्षा बंधन का यह पर्व भाई एवं बहन के असीम प्रेम एवं सौहार्दय का त्योहार है, जहाँ बहन अपने भाई की रक्षा एवं लम्बी उम्र के लिए कामना करती है वही भाई भी बदले में उसकी हर प्रकार से रक्षा करने का प्रण करता है। बहन के इस रक्षा सूत्र का माब रखते हुए उसे उपहार देता है।
भाई बहन के प्रेम से सरोबर रक्षाबंधन का त्योहार इस वर्ष ३ अगस्त २०२० को पड़ रहा है।
रक्षा बंधन का पौराणिक महत्व :
श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि को रक्षा सूत्र बाँधने का यह पर्व प्राचीन काल से चला आ रहा है। इसका वर्णन कई वैदिक ग्रंथों मिलता भी है।
इस दिन समुद्र की पूजा का विधान है एवं सभी पावन नदियों में स्नान कर तन, मन एवं बुद्धि की शुद्धि की जाती है। ऋषि-मुनियों के उपदेश की पूर्णाहुति भी इसी दिन होती थी।इस दिन गुरु अपने शिष्यों को रक्षा सूत्र बाँधते थे एवं उनके मानसिक, शारीरिक, एवं उनकी आत्मा शुद्धि का आशीर्वाद अपने शिष्यों को देते थे।
ऋषियों द्वारा बांधा जाने वाला रक्षा सूत्र :
ऋषिवर , राजाओं के हाथों में भी रक्षासूत्र बाँधते थे ताकि राजा किसी भी प्रकार की हानि से बचें एवं अपने प्रजा की रक्षा करें। । इसी प्रथा को आगे बड़ते हुए, आज भी भारत के विभिन्न प्रदेशों में ब्राह्मण अपने यजमानों को राखी बाँधने उनके घर जाते हैं एवं मंत्रोचारण के साथ रक्षा सूत्र समस्त परिवार को बांधा जाता है। भारत में चूँकि प्रकृति को जीवन का रक्षक माना गया है इसीलिए कई स्थानों में वृक्षों एवं पेड़ पौधों में भी रक्षा सूत्र को बाँधने की प्रथा है।
इन्द्राणी के तेजस्वी रक्षा सूत्र ने दिलवायी थी देवताओं को विजय :
“भविष्य पुराण” के अनुसार देवों और दानवों के युद्ध में जब देवता हारने लगे, तब उन्होंने देवराज इंद्र से गुहार लगाई, सभी देवगणो को ऐसा भयभीत देख कर देवराज इंद्र की पत्नी इंद्राणी ने उनके हाथों में रक्षासूत्र बाँध दिया। इन्द्राणी की तपस्या के तेज़ से युक्त इस रक्षा सूत्र ने देवताओं को असीम शक्ति प्रदान की एवं देव गणो ने दानवों पर विजय प्राप्त की।
श्री कृष्ण एवं द्रौपदी के रक्षा सूत्र की किवदंति :
इसका एक वर्णन “महाभारत” में भी मिलता है, ऐसा माना जाता है की शिशुपाल का वध करते समय श्री कृष्ण की तर्जनी ऊँगली में चोट आ गयी एवं रक्त बहने लगा, यह देख द्रौपदी ने तुरंत अपनी ओड़नी के किनारे को फाड़ कर कृष्ण की ऊँगली में बांधा ताकि रक्त का रिसाव रुक सके। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा थी, तत्पश्चात श्री कृष्ण ने उन्हें बहन माना एवं कहा कि मैं आपके इस आचरण का कृतज्ञ हूँ एवं उन्होने द्रौपदी को वचन दिया की समय पड़ने पर वह भी उनके एक-एक सूत का क़र्ज़ उतारेंगे।
महाराज बलि एवं माता लक्ष्मी :
महाराज बलि बहुत बलशाली थे एवं उन्होंने समस्त लोकों में अपना राज फैला लिया था, जब ऐसा हुआ तो समस्त देवताओं ने भगवान विष्णु का आवहन किया एवं उनके इस आग्रह पर भगवान विष्णु ने वामन अवतार द्वारा राजा बलि को हराया। अपनी भक्ति से विष्णु जी का दिल जीतने वाले बाली ने उनसे आग्रह किया कीया की आप हमेशा मेरे सामने रहिए, भगवान विष्णु के वरदान से ऐसा ही होने लगा । यह देख माता लक्ष्मी बहुत चिंतित हुईं, नारद मुनि के कहने पर, श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि को उन्होंने राजा बलि को रक्षा सूत्र बांधा एवं उन्हें अपना भाई बनाया। बहन के आग्रह पर महाराज बलि ने विष्णु जी को अपने प्रण से मुक्त किया एवं वह माता लक्ष्मी के साथ वापस बैकुंठ लोक में जा पाए। ऐसा माना जाता है की तभी से रक्षा बंधन के पवन पर्व की शुरुआत हुई थी।
रक्षा बंधन तिथि एवं मुहूर्त :
श्रावण मास की पूर्णिमा दिनांक २ अगस्त रात्रि को ९:२८ मिनट से ३ अगस्त २०२० को रात्रि ९:२८ मिनट तक रहेगी। रक्षाबंधन में कई वर्षों बाद यह शुभ संयोग बन कर आ रहा है जब पूरा दिन दूषित नहीं रहेगा एवं आप किसी भी समय रक्षा सूत्र बाँध सकते हैं।
इस वर्ष रक्षा बंधन के दिन श्रवण नक्षत्र, सावन का पाँचवा सोमवार, पूर्णिमा तिथि रहेगी एवं पूरे दिन सर्वार्थ सिद्ध योग भी होगा। अत्यंत शुभ दिन होने से रक्षा सूत्र को बाँधने से अधिक सुख एवं फल प्राप्ति होगी।
रक्षा सूत्र बाँधने की विधि :
एक थाल को रोलि, चंदन, अक्षत से सजायें, उसमें एक घी का दीपक प्रज्वलित करें, धूप, फूल, मिठाई आदि को भी थाल में रखें। साथ ही में रक्षा सूत्र यानी की मौलि या फिर राखी को भी रखें। सबसे पहले प्रातः काल स्नान आदि कर शुद्ध होकर, ईश्वर के समक्ष एक उपरोक्त सजी हुई थाल, मौलि आदि रखें। षोडशोपचार द्वारा प्रभु का पूजन करें एवं उन्हें मौलि बांधे ताकि आपके परिवार में उनकी कृपा हमेशा बनी रहे।
उसके बाद उनसे प्रार्थना करें की इस रक्षा सूत्र / राखी में उनका आशीर्वाद बसे ।
उसके बाद भाई को सामने पूर्व मुखी बैठा कर , भाई की दीर्घायु की कामना करते हुए ईश्वर से प्रार्थना करें की वह हर समय आपके भाई की रक्षा सभी विप्पतियों से करे। भाई को आरती दिखाएँ एवं मन ही मन प्रार्थना करें की इस दिए की रोशनी से आपके भाई के जीवन का समस्त अंधकार नष्ट हो जाएँ एवं केवल ईश्वर की ज्योति उनके चारों तरफ़ बसे।
फिर रोलि अक्षत से उनका टीका करें, उसके बाद कलाई में मंत्र पड़ कर राखी बाँधें । अंत में भाई मिठाई खिलायें एवं ईश्वर को भी अपने भाई की रक्षा करने के लिए धन्यवाद दें। उसके पश्चात भाई भी अपनी बहन को उसकी इस प्रार्थना के बदले में कोई उपहार देता है।
रक्षा सूत्र बाँधते समय निम्न मंत्र पड़ें :
” येन बद्धो बलि: राजा, दानवेंद्रो महाबल: ,
तेन त्वामपी बध्नामी रक्षे मा चल मा चल ”
शुभ मुहूर्त :
3 अगस्त को प्रातः काल 9:29 am से शुभ योग शुरू हो जाएगा एवं रात्रि को 9:17 pm तक रहेगा।
अपराह्न मुहूर्त :
दोपहर 1:48 pm – 4:29 pm तक रहेगा।
यह मुहूर्त इस दिन किसी भी कार्य को करने के लिए सबसे शुभ माना जाता है। इस समय भाई की कलाई में रक्षा सूत्र बाँधने से, भाई को हर मार्ग में विजय मिलती है एवं दीर्घायु प्राप्त होती है।
राहु काल : शाम को १६:३० – १८:०० तक रहेगा, इस समय रक्षा सूत्र को नहीं बांधे।
रक्षा बंधन का महत्व :
ऐसा माना जाता है की रक्षा बंधन में जब बहन भाई की कलाई में रखी बाँधती है तो उस भाई की उम्र लम्बी होती है, उसके ऊपर आने वाली किसी भी प्रकार की विपदाओं का नाश होता है, एवं भूत प्रेत, बीमारी, अकाल मृत्यु आदि बाधाओं से उसके भाई की रक्षा होती है। इस रक्षा सूत्र के प्रभाव से भाई को बल, बुद्धि एवं वैभव की प्राप्ति होती है।
बहन की ऐसी प्रार्थना पर , भाई भी अपनी बहन को वचन देता है की वह भी उसपर आने वाली किसी भी आपदा से उसकी रक्षा करेगा। यह पर्व भाई एवं बहन दोनो के ही आपसी प्रेम का प्रतीक है जहाँ दोनो एक दूसरे की उन्नति एवं रक्षा की कामना करते हैं।