नवसंवत्सर २०७७
इस वर्ष नवसंवत्सर एवं नवरात्रि का प्रारम्भ 25 मार्च से होगा। वैसे तो प्रतिपदा तिथि २४ मार्च २०२० को दोपहर में १४:५७ को शुरू होगी पर सूर्योदय, प्रतिपदा तिथि में चूँकि २५ मार्च को पड़ेगा इसीलिए नव वर्ष एवं नवरात्रि २५ मार्च से मनायी जाएँगी।
नव वर्ष का फल :
२०७७ संवत्सर “प्रमादी” नामक संवत्सर पड़ रहा है। इस वर्ष के राजा बुद्ध रहेंगे। मंत्री चंद्र रहेंगे एवं आने वाले वर्ष का फल इन दोनो ग्रहों की चालों से विशेषकर प्रभावित रहेगा।
इस वर्ष के प्रथम दिन से चैत्र नवरात्रि भी शुरू होती हैं एवं इस वर्ष माँ नौका में सवार होकर आएँगी। माता का नौका पर आगमन शुभ संकेत है। आने वाला वर्ष जंबूद्वीप ( यानी की भारत वर्ष में) शुभ परिणाम लेकर आएगा।
बुद्ध के राजा होने से व्यापार या शेयर मार्केट में अच्छे उछाल देखने को मिलेंगे। जैसे जैसे वर्ष आगे बड़ेगा, व्यापार में स्तिथियाँ सुदृढ़ होने लगेंगी। हालाँकि चंद्रमा एवं बुद्ध में भी आपसी पिता-पुत्र का विरोधाभास रहता है। राजा एवं मंत्री की इसी आपसी शत्रुता के कारण, कुछ कठिनाइयों के पश्चात स्तिथियाँ सुधरेंगी। चंद्र के मंत्री होने से इस वढ़ वर्षा अधिक रहेगी। बुद्ध के राजा होने से व्यापारी वर्ग के लिए शुभ संकेत हैं, समाज में स्वार्थ एवं निजी फ़ायदे लेने की मानसिकता अधिक रहेगी। भावनात्मक तौर पर जनमानस संवेदनशील रहेगा एवं छोटी बातें भी राई का पहाड़ बन जाएँगी।
बुद्ध एवं चंद्रमा का विरोधाभास, पिछले वर्ष से फैल रही कोरोना महामारी को समाप्त करने में शनै शनै सहायक होंगे। अप्रैल के महीने में जब सूर्य उच्च राशि के होंगे यानी की १३ अप्रैल से १४ मई तक में इस महामारी को लेकर कुछ विशेष समाधान प्राप्त हो सकते हैं। लेकिन गुरु के नीचस्थ होने से अप्रैल से लेकर जून तक का समय काफ़ी तांडव लेकर आएगा, भले ही गुरु नीच भंग योग से गुज़र रहे हैं, फिर भी शनी एवं प्लूटो की युती महामारी या सामाजिक उपद्रव की घोतक है। कोरोना महामारी १९/२० सितम्बर को जाकर समाप्त होगी लेकिन गुरु के फिर २२ नवम्बर से अगले वर्ष २०२१ में अप्रैल – मई तक नीचस्थ रहने से कोई ना कोई भयंकर विपदा जो सरकार पर अत्यंत भारी पड़े, वह रहेगी।
इस वर्ष देश की वित्तीय स्तिथियों को सुधारने के लिए सरकार कुछ ठोस एवं कड़े क़दम उठा सकती हैं। इस वर्ष मातृतुल्य महिलाओं का ज़ोर रहेगा एवं समाज में या फिर विभिन्न क्षेत्रों में वे नाम कमाएँगी। शनी के अपनी राशि में गोचर करने की वजह से समाज एवं जनमानस के कल्याण के लिए काफ़ी ठोस क़दम उठाएँ जाएँगे।
इस समय भारत में भी कोरोना नामक महामारी का आगमन हो चुका है। ऐसे में माँ के नौका में सवार होकर आने से माँ की कृपा से भारत में महामारी का उतना असर नहीं होगा एवं भारत इस बीमारी के प्रकोप से बाहर निकल जाएगा। कोरोना जैसी महामारी शनी के राजा बनने के कारण हुई। संवत्सर बदलने के साथ ही इस बीमारी पर क़ाबू पाने के शनै शनै संयोग बनने शुरू हो जाएँगे।
पिछले वर्ष के राजा शनी थे एवं मंत्री सूर्य। शनी एवं सूर्य वैसे तो पिता पुत्र हैं लेकिन आपस में इनका छत्तीस का आँकड़ा है। इसी वजह से महामारी, कोर्ट कचहरी , सरकार पर अधिक हावी रही एवं जनमानस एवं सरकार में विरोधाभास एवं मतभेद दंगों तक उतर के आए। वायु द्वारा युद्ध की स्तिथी या हवाई यात्राओं द्वारा युद्ध जैसी स्तिथियाँ भी दिख रही थी। कोरोना जैसी महामारी चीन से बाक़ी देशों में हवाई मार्ग द्वारा ही पहुँची। इस बारे में मैंने अपने पिछले नव वर्ष फल में लिखा भी था।
अश्विन मास में अधिक मास रहेगा : इस वर्ष अश्विन का महीना ५८ दिनो का रहेगा एवं इसी मास में अधिक मास सम्मलित होगा। अधिक मास की वजह से शारदीय नवरात्रि, दशहरा और दीपावली जैसे बड़े त्योहारों की तिथियों में अंतर देखने को मिलेगा।
नवसंवत्सर का महत्व :
# इसी दिन से ब्रह्मा जी ने ब्रह्मांड की रचना शुरू की थी।
# भगवान विष्णु का मत्स्यावतार भी इसी दिन हुआ था।
# सतयुग का प्रारम्भ भी इसी दिन से शुरू हुआ था।
# सम्राट विक्रमादित्य का विदेशी शकों को पराजित कर , सम्राट की उपाधि प्राप्त करने के उपलक्ष्य में एक विजय नाद के रूप में नव वर्ष कि शुरुआत की इसी दिन से घोषणा हुई। उन्ही के नाम से विक्रम संवत्सर शुरू हुआ।
# विक्रम संवत्सर आकाशीय गंगा, विभिन्न नक्षत्रों, ग्रहों, चंद्रमा के गोचर पर आधारित है एवं ग्रेगोरीयन कैलेंडर से कहीं अधिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण से परिपक्व माना जाता है।
२५ मार्च को शुरू हो रही हैं चैत्र नव रात्रि :
चैत्र नवरात्रि महत्व एवं विधान :
चैत्र प्रतिपदा का महत्व पूरे जंबूद्वीप यानी की भारतवर्ष में धूम धाम से मनाया जाता है। विभिन्न प्रधेशों में इसे विभिन्न रूपों में मनाया जाता है एवं हर सामाजिक तबके में इसका एक विशेष महत्व है।
इसी दिन को महाराष्ट्र में गुडी पड़वा के रूप में मनाया जाता है एवं इसी दिन दक्षिण में इसे उगादि (ugadi) के रूप में मनाया जाता है। हिन्दू विक्रम समवत्सर के अनुसार हर वर्ष चैत्र (Chaitra) महीने के पहले दिन से ही नव वर्ष की शुरुआत हो जाती है. साथ ही इसी दिन से चैत्र नवरात्रि (Chaitra Navaratri 2019) भी शुरू हो जाते हैं. ब्रह्मा ने सृष्टि का निर्माण भी इसी दिन किया था। प्रभु राम एवं युधिष्ठर का राज्यभिषेख भी इसी दिन किया गया था। भगवान विष्णु का मत्स्य अवतार भी इसी दिन माना जाता है। महर्षि दयानंद ने आर्य समाज की स्थापना भी इसी दिन की थी, संत झूलेलाल की जयंती भी इसी दिन मनायी जाती है।
नवरात्रि का महत्व:
नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा (Durga) के सभी नौ रूपों की पूजा की जाती है. पूरे वर्ष में चार नवरात्रि होती हैं, जिनमे दो गुप्त नवरात्रि होती हैं जो तांत्रिक सिद्धि के लिए मुख्यतः मानी जाती हैं एवं दो सामाजिक रूप से मनायी जाने वाली नवरात्रि होती हैं जिन्हें चैत्र के महीने में एवं शरद नवरात्रि के रूप में धूम धाम से मनाया जाता है। इन पूरे नौ दिन, संसार में देवी शक्ति का संचार अत्यधिक रूप में रहता है एवं उनकी उपासना से साधक के जीवन में धन धान्य, सुख समृद्धि एवं परिवार में ख़ुशहाली सभी बड़ती है। शत्रुओं का हनन होता है एवं किसी भी प्रकार के नज़र दोष,भूत-प्रेत, तंत्र मंत्र का असर आदि से भी मुक्ति प्राप्त होती है। इन पूरे नौ दिनो में माँ के नौ स्वरूपों के पूजन का विधान है।
इस बार नवरात्रि की शुरुआत रेवत्री नक्षत्र से हो रही है, उदय काल में यह योग होने से तंत्र साधना एवं मंत्र साधना के लिए यह नवरात्रि विशेषकर फल दायीं रहेगी।
नवरात्रि की पूजा-विधि:
नवरात्रि में प्रथम दिन, शुभ मुहूर्त में कलश स्थापना की जाती है, किसी मिट्टी के पात्र में जौ बोए जाते हैं। नवग्रहों के साथ षोडश मात्रिकाओं एवं समस्त देवी देवताओं का आवहन कर पूजन किया जाता है। अखंड ज्योति जालायी जाती है एवं माँ के नौ रूपों का विधिवत पूजन किया जाता है। यह समय साधना के लिए सर्वोत्तम रहता है। माँ के नवरं मंत्र का पूजन विशेषकर किया जाता है। दुर्गा सप्तशती का पाठ करें।
प्रतिपदा के दिन कलश स्थापना से पूर्व निम्न मंत्र का उच्चारण कर माँ का आशीर्वाद लेकर नवरात्रि पूजन की शुरुआत करें :
“ॐ जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।।”
माँ के नवार्ण मंत्र का जप, माँ के भक्तों को समस्त समस्याओं से मुक्त कराता है। दुर्गा सप्तशती में वर्णन है की माँ ही महामारी का रूप हैं एवं माँ ही उसका निवारण भी हैं। उनकी उपासना से व्यक्ति किसी भी प्रकार की महामारी के संक्रमण से सुरक्षित रहता है।
नवरात्रियों में प्रातः एवं रात्रि को माँ के नवार्ण मंत्र का १०८ बार जप अवश्य करें।
नवार्ण मंत्र :
“ॐ ऐँ ह्रीं क्लीं चामुण्डाये नमः “
प्रथम नवरात्रि – शैलपुत्री
द्वितीय नवरात्र – ब्रह्मचारिणी
तृतीय नवरात्र – चंद्रघंटा
चतुर्थ नवरात्र – कुष्मांडा
पंचमी नवरात्र – स्कंदमाता
षष्ठी नवरात्र – कात्यायनी
सप्तमी नवरात्र – कालरात्रि
अष्टमी नवरात्रि – महागौरी
नवमी नवरात्र – सिद्धिदात्री
कई लोग अष्टमी को कन्या पूजन करते हैं एवं कई नवमी पर बाल कन्याओं की पूजा के साथ नवरात्रि का उद्यापन करते हैं। बाल कन्याओं की पूजा की जाती है और उन्हे हलवे, पूरी , गिफ़्ट आदि दे कर नवरात्र व्रत का उद्यापन किया जाता है।
नीचे दिए गए विडीओ में जाने कलश स्थापना करने की विधि एवं साथ ही साथ कौन से दिन माँ के किस स्वरूप की करें पूजा एवं उन्हें कौन सा भोग लगाएँ या फिर कौन से फूल अर्पित करें की माँ हो प्रसन्न एवं करें आपकी हर मनोकामना पूर्ण।
कलश स्थापना मुहूर्त :
नवरात्रि की प्रतिपदा में कलश स्थापन किया जाता है। कलश स्थापना करने से साधक माँ एवं समस्त देवी देवताओं का आवहन करते हैं एवं उन्हें साक्षी मान कर पूजन करते हैं। इस बात का अवश्य ध्यान रखें की चित्रा नक्षत्र और वैधृति योग होने पर कलश स्थापना नहीं करनी चाहिए।
प्रातः काल 06:19 से 7:17 तक में कलश स्थापित करें।
शुभ चौघड़िया : 6:19 am – 9:23 am
10:55 am to 12:27 am
राहू काल : 12:27 pm – 1: 59 pm ( घाट स्थापना के लिए निषेध है)
अभिजीत मुहूर्त्त : नहीं है।
प्रतिपदा तिथि शुरू : 2:57 pm (24 March 2020) से 5:26 pm ( 25 March 2020 तक). उदया तिथि २५ मार्च को रहेगी, नवसंवत्सर २५ मार्च २०२० , बुधवार से शुरू होगा।
संधि पूजन : अष्टमी एवं नवमी तिथि की संधि में देवी चामुण्डा का हवन किया जाता है।
संधि मुहूर्त : प्रातः 3:16 am – 4:04 am ( 2nd April 2020 )
प्रभु श्री राम जयंती : 2 अप्रैल को रामनवमी का पुण्य पर्व भी मनाया जायेगा। पूजन का समय 11:10 am – 13:40
राम नवमी मध्याहन मुहूर्त : 12:25 pm
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