रक्षा बंधन की एवं स्वतंत्रता दिवस की आप सभी को ढेर सारी शुभ कामनाएँ।
भाई-बहन के अटूट प्रेम का पर्व रक्षाबंधन का त्योहार श्रावणी पूर्णिमा 15 अगस्त को मनाया जाएगा।
हालाँकि, राखी सामान्यतः बहनें भाई को ही बाँधती हैं परन्तु ब्राह्मणों, गुरुओं और परिवार में छोटी लड़कियों द्वारा सम्मानित सम्बंधियों (जैसे पुत्री द्वारा पिता को) को भी रक्षा सूत्र बाँधा जाता है। इस दिन बहनें अपने भाइयों के हाथ में रक्षा सूत्र बाँध कर, ईश्वर से प्रार्थना करती हैं की उनके भाई की ईश्वर रक्षा करे एवं उन्हें लंबी उम्र प्रदान करें। बदले में भाई भी अपनी बहन को प्रेम स्वरूप उपहार भेंट में देते हैं।
यह पर्व आपसी प्रेम एवं एक दूसरे की रक्षा का द्योतक है . इस दिन घर में पंडित जी या घर के बड़े बुज़ुर्ग भी समस्त परिवार के सदस्यों को रक्षा सूत्र बाँधते हैं ।
रक्षाबंधन मुहूर्त
पूर्णिमा तिथि 14 अगस्त को दोपहर 3.45 बजे से प्रारंभ होकर 15 अगस्त को शाम 5.58 तक रहेगी। भद्रा भी सूर्योदय से पहले ही समाप्त हो जाएगी। चंद्र प्रधान श्रवण नक्षत्र का संयोग बहुत ख़ास रहेगा। सुबह से ही सिद्धि योग बनेगा जिसके चलते पर्व की महत्ता ओर अधिक बढ़ेगी।
रक्षा बंधन का मुहूर्त १५ अगस्त को सुबह 05:54 से शाम 5:58 तक रहेगा।
चौघड़िया अनुसार राखी बांधने का शुभ समय
प्रातः 5:53 से 7:23 तक शुभ
प्रातः 10:48 – 12:25 तक चर
दिन 12:25 – 14:03 तक लाभ
दिन 14:03 – 15:41 तक अमृत
प्रातः 11:59 से 12:52 तक अभिजीत मुहूर्त
इस समय राखी बांधना ज्यादा शुभ रहेगा।
सूर्योदय व्यापिनी तिथि मानने के कारण रात में भी राखी बांधी जा सकेगी लेकिन फिर भी पूर्णिमा तिथि के रहते राखी बांधना शुभ रहेगा।
रक्षाबंधन के दिन श्रवण नक्षत्र प्रातः 08:01 से होने के कारण पंचक भी लगेगा, लेकिन रात्रि 9 बजकर 27 मिनट पर आरम्भ होने के कारण राखी बांधने में यह बाधक नहीं बनेगा।
पंचक को लेकर भ्रांति यह है कि इसमें कोई भी कार्य नहीं करना चाहिए।
पंचक में अशुभ कार्य नहीं करना चाहिए, क्योंकि उनकी पांच बार पुनरावृत्ति होती है। माना जाता है की पंचक में शुभ कार्य करने में कोई आपत्ति नहीं है।
” येन बद्धो बली राजा, दानवेन्द्रो महाबलः।
तेन त्वां प्रतिबध्नामि, रक्षे ! मा चल , मा चल।।”
अर्थात- जिस प्रकार राजा बलि ने वामन अवतार ब्राह्मण द्वारा रक्षासूत्र से बंधकर विचलित हुए बिना अपना सब कुछ दान कर दिया। उसी प्रकार हे रक्षा! आज मैं तुम्हें बांधता हूँ ,तू भी अपने उद्धेश्य से विचलित न हो और दृढ़ बना रहे।
पौराणिक कथा :
भविष्य पुराण में वर्णित एक गाथा अनुसार, एक समय देवगण , असुरी शक्तियों द्वारा ट्रस्ट हो रहे थे एवं हारने लगे थे तो इंद्र देव की पत्नी इन्द्राणी ने अपने तप के तेज़ से इंद्र देव के हाथ में एक रक्षा सूत्र बाँधा ताकि युद्ध में उनकी विजय हो।
माना जाता है की इन्द्राणी के तप की शक्ति उस रक्षा सूत्र में सिमट गई एवं युद्ध में विजय इंद्र देव को प्राप्त हुई। उसी दिन से श्रावण पूर्णिमा के दिन यह धागा बाँधने की प्रथा चली आ रही है। यह धागा धन, शक्ति, हर्ष और विजय देने में पूरी तरह समर्थ माना जाता है।
द्वापर युग में जब एक बार युद्ध में शिशुपाल का वध करते समय श्री कृष्ण की ऊँगली घायल हो गयी तो द्रौपदी ने अपनी ओड़िनी को फाड़ कर उनकी ऊँगली में बाँधा था एवं रक्त प्रवाह रोका था एवं इसके एवज़ में श्री कृष्ण ने उन्हें वचन दिया था की जब भी उन्हें श्री कृष्ण की आवश्यकता होगी वह उनकी आकर मदद करेंगे।
वामन पुराण, स्कन्ध पुराण, पद्मपुराण और श्रीमद्भागवत में वामनावतार नामक कथा में रक्षाबन्धन का प्रसंग मिलता है। दानवेन्द्र राजा बलि ने जब स्वर्ग का राज्य छीनने का प्रयत्न किया तब भगवान श्री हरी ने वामन अवतार लेकर, एक ब्राह्मण के रूप में राजा बलि से भिक्षा माँगी, अपने गुरु के माना करने के बाद भी दान वीर बलि ने श्री हरी को तीन पग भूमि देने का वचन दिया, श्री हरी ने तीन पग में पूर्ण आकाश, पाताल और धरती नापकर राजा बलि को रसातल में भेज दिया। श्री हरी द्वारा राजा बलि के अहं के चकनाचुर किए जाने की वजह से भी इस दिन को बलेव त्योहार के नाम से भी पुकारा जाता है।
बलि ने पाताल लोक में अपनी भक्ति के बल से भगवान को रात-दिन अपने सामने रहने का वचन ले लिया। भगवान के घर न लौटने से परेशान लक्ष्मी जी ने, नारद मुनि के कहने पर एक वृद्धा नारी का स्वरूप लेकर पाताल लोक गयीं एवं महाराज बलि को उन्होंने रक्षा सूत्र बाँधा एवं बदले में अपने पति श्री नारायण को अपने साथ बैकुंठ लोक ले गयीं। उस दिन भी श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी।
विष्णु पुराण के एक प्रसंग में कहा गया है कि श्रावण की पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु ने हयग्रीव के रूप में अवतार लेकर वेदों को ब्रह्मा के लिये फिर से प्राप्त किया था। हयग्रीव को विद्या और बुद्धि का प्रतीक माना जाता है।
आप सभी को रक्षाबंधन की एवं स्वतंत्रता दिवस की अनन्त शुभकामनाएँ !!
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