देव दीपावली, गुरू पर्व , कार्तिक पूर्णिमा एवम् गंगा स्नान की आप सभी को अनन्त शुभकामनाएं
देव दीपावली पूजा शुभ मुहूर्त (Dev Diwali Puja Shubh Muhurat) :
पूर्णिमा तिथि प्रारंभ- 11 नवंबर को शाम 6:02 मिनट से
पूर्णिमा तिथि समाप्त- 12 नवंबर को शाम 7: 04 मिनट तक।
देव दीपावली प्रदोष काल शुभ मुहूर्त- संध्या 5 :11 मिनट से संध्या 7: 48 मिनट तक।
पौराणिक महत्व :
पौराणिक कथा अनुसार जब भगवान विष्णु चीर निद्रा में चौमास तक रहते हैं तब भगवान शिव जी को संसार के पालन का भर दीया जाता है। कार्तिक शुक्ल एकादशी को श्री हरी नारायण अपनी चीर निद्रा से जागृत होते हैं एवं शिव जी उन्हें उनका कार्य भार सम्भाल कर वापस कैलाश को प्रस्थान करते हैं।
इसी कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक भयावह राक्षस का वध भी किया था एवं समस्त संसार को उसकी कुदृष्टि से निवृत किया था। इसी ख़ुशी में सभी देवी देवता धरती पर उतरते हैं एवं दीप प्रज्वल्लितकर ख़ुशियाँ मानते हैं। इसी प्रथा का अनुसरण करते हुए आज भी शिव की नगरी काशी में गंगा घाट में दीप दान किया जाता है। प्रातः काल से ही लोग गंगा में स्नान कर माता लक्ष्मी एवं श्री हरी नारायण एवं भगवान शिव की पूजा अर्चना करते हैं।
एक दूसरी कथा अनुसार, श्री हरी अपनी निद्रा से कार्तिक शुक्ल एकादशी को चार माह पश्चात जागृत होते हैं एवं इस दिन से भक्त जन माता लक्ष्मी एवं श्री हरी की पूजा करते हैं। उनकी निद्रा के जागरण से प्रसन्न होकर सभी देवी देवता धरती पर उतार कर दीप आरती द्वारा लक्ष्मी नारायण की महा आरती करते हैं। इसी उपलक्ष्य में दीप दान की प्रथा की शुरुआत हुई।
काशी नगरी में दीप दान :
दिवाली के 15 दिन बाद आने वाले इस पर्व में स्नान कर दीपदान करने का काफी अधिक महत्व माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन देवी देवता पृथ्वी पर आते हैं एवं दीप दान करते हैं। इसकी भव्यता काशी नगरी वाराणसी में रात्रि को दिखाई पड़ती है जब माता गंगा अनन्त दीपों से प्रज्वल्लित हो उठती है।
देव दीपावली में पितरों का तर्पण एवं दान का महत्व :
कार्तिक पूर्णिमा के दिन प्रातः काल ही गंगा जी में स्नान करने के पश्चात पितरों के तर्पण का भी विधान है। देव दीपावली के दिन, पितरों के नाम से तर्पण, दान पुण्य, अर्घ्य, जप – तप, पूजन आदि करने से कई गुणा शुभ फल प्राप्त होता है एवं पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
पूजा विधि :
देव दीपावली को रपदोश काल में पूर्णिमा की कथा पड़ें, लक्ष्मी नारायण का पूजन करें एवं साथ में शिव परिवार का भी षोडशोपचर पूजन करें। तत्पश्चात घी या फिर तिल के तेल के दिया जलाएँ, एक दीपक केले के पेड़ के नीचे, एक पीपल के पेड़ के नीचे, एक तुलसी माँ के नाम, एक अपने इष्ट देव के नाम एवं समस्त देवी देवताओं के नाम दीपक जला कर घर को सजायें एवं आँगन में भी दिया जलाएँ। पूज्य नदियों में विशेषकर गंगा नदी में दीप दान का विशेष महत्व है।
गुरु नानक देव जयंती :
आज ही के दिन गुरु नानक देव जी का जन्मोत्सव प्रकाशोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस वर्ष उनकी ५५०वीं जयंती के रूप में प्रकाशोत्सव को मनाया जा रहा है।
आपकी देव दीपावली , गुरु नानक जयंती शुभ हो।
नन्दिता पाण्डेय, ज्योतिषाचार्या
+91-9312711293, soch.345@gmail.com
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