आप सभी को हिंदू नवसंवत्सर (नव वर्ष ), एवं चैत्र नवरात्रि की अनन्त शुभ कामनाएँ।
इस वर्ष नवसंवत्सर एवं नवरात्रि का प्रारम्भ ६ अप्रैल से होगा। वैसे तो प्रतिपदा तिथि ५ अप्रैल को दोपहर में १४:२० को शुरू होगी पर सूर्योदय, प्रतिपदा तिथि में चूँकि ६ अप्रैल को पड़ेगा इसीलिए नव वर्ष एवं नवरात्रि ६ अप्रैल से मनाये जाएँगे।
नव वर्ष का फल :
२०७६ संवत्सर परिधावि नामक संवत्सर पड़ रहा है। इस वर्ष के राजा शनी देव रहेंगे एवं वह भैंसे पर सवार होकर आएँगे। मंत्री सूर्य रहेंगे एवं आने वाले वर्ष का फल इन दोनो ग्रहों की चालों से विशेषकर प्रभावित रहेगा। कोर्ट कचहरी के मसले ज़्यादा समाज को प्रभावित करें। विधि एवं गवर्न्मेंट दोनो में विरोधाभास रहेगा लेकिन इस वर्ष विधि (judiciary) , सरकार पर ज़्यादा भारी पड़ेगी। पिछले वर्ष भी सूर्य एवं शनी का प्रभाव संवत्सर पर था पर तब सूर्य राजा थे एवं शनी मंत्री थे।
यह वर्ष काफ़ी उथल पथल लेकर आ सकता है। सरकार में काफ़ी बदलाव की स्तिथियाँ बनेंगी। कुछ नए चेहरे सामने उभर कर आएँगे। कुछ नामी राजनेताओं के लिए यह वर्ष भारी पड़ेगा। इस वर्ष लगभग ४-५ महत्वपूर्ण शख़्शियतो के लिए मृत्यु तुल्य कष्ट लेकर आ सकता है। शेयर मार्केट में गरमियों के महीनो में एकदम से गिरावट आ सकती है लेकिन अगले वर्ष मार्च से शेयर मार्केट सम्भलेगा एवं उछाल आएँगे। यह वर्ष कपटी नेताओं के लिए एवं कपटी धर्म गुरुओं के लिए भी कठिन समय लेकर आ सकता है। महँगाई बड़ेगी एवं सरकार में एवं कोर्ट में मन मुटाव बड़ सकता है। विश्व में न्याय संगत स्तिथियाँ बड़ेंगी एवं भारत को इसका लाभ होगा। बॉर्डर टेन्शन बड़ सकते हैं। आगज़नी एवं भूकम्प के संयोग ज़्यादा अग्रसर होंगे। वायु विकार, हवाई माध्यम से सम्बंधित war ऐक्टिविटी या फिर air strike, air accident के भी योग ज़्यादा रहेंगे। महिलाओं के लिए यह समय अनुकूल हैं एवं कई महिला प्रतिभाओं द्वारा देश का नाम रोशन होगा। मीडिया, cosmetic,फ़िल्म, फ़ैशन आदि से समबंधित कार्य उत्तम परिणाम देंगे।
चैत्र नवरात्रि महत्व एवं विधान :
चैत्र प्रतिपदा का महत्व पूरे जंबूद्वीप यानी की भारतवर्ष में धूम धाम से मनाया जाता है। विभिन्न प्रधेशों में इसे विभिन्न रूपों में मनाया जाता है एवं हर सामाजिक तबके में इसका एक विशेष महत्व है।
इसी दिन को महाराष्ट्र में गुडी पड़वा के रूप में मनाया जाता है एवं इसी दिन दक्षिण में इसे उगादि (ugadi) के रूप में मनाया जाता है। हिन्दू विक्रम समवत्सर के अनुसार हर वर्ष चैत्र (Chaitra) महीने के पहले दिन से ही नव वर्ष की शुरुआत हो जाती है. साथ ही इसी दिन से चैत्र नवरात्रि (Chaitra Navaratri 2019) भी शुरू हो जाते हैं. ब्रह्मा ने सृष्टि का निर्माण भी इसी दिन किया था। प्रभु राम एवं युधिष्ठर का राज्यभिषेख भी इसी दिन किया गया था। भगवान विष्णु का मत्स्य अवतार भी इसी दिन माना जाता है। महर्षि दयानंद ने आर्य समाज की स्थापना भी इसी दिन की थी, संत झूलेलाल की जयंती भी इसी दिन मनायी जाती है।
नवरात्रि का महत्व:
नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा (Durga) के सभी नौ रूपों की पूजा की जाती है. पूरे वर्ष में चार नवरात्रि होती हैं, जिनमे दो गुप्त नवरात्रि होती हैं जो तांत्रिक सिद्धि के लिए मुख्यतः मानी जाती हैं एवं दो सामाजिक रूप से मनायी जाने वाली नवरात्रि होती हैं जिन्हें चैत्र के महीने में एवं शरद नवरात्रि के रूप में धूम धाम से मनाया जाता है। इन पूरे नौ दिन, संसार में देवी शक्ति का संचार अत्यधिक रूप में रहता है एवं उनकी उपासना से साधक के जीवन में धन धान्य, सुख समृद्धि एवं परिवार में ख़ुशहाली सभी बड़ती है। शत्रुओं का हनन होता है एवं किसी भी प्रकार के नज़र दोष,भूत-प्रेत, तंत्र मंत्र का असर आदि से भी मुक्ति प्राप्त होती है। इन पूरे नौ दिनो में माँ के नौ स्वरूपों के पूजन का विधान है।
इस बार नवरात्रि की शुरुआत रेवत्री नक्षत्र से हो रही है, उदय काल में यह योग होने से तंत्र साधना एवं मंत्र साधना के लिए यह नवरात्रि विशेषकर फल दायीं रहेगी।
नवरात्रि की पूजा-विधि:
नवरात्रि में प्रथम दिन, शुभ मुहूर्त में कलश स्थापना की जाती है, किसी मिट्टी के पात्र में जौ बोए जाते हैं। नवग्रहों के साथ षोडश मात्रिकाओं एवं समस्त देवी देवताओं का आवहन कर पूजन किया जाता है। अखंड ज्योति जालायी जाती है एवं माँ के नौ रूपों का विधिवत पूजन किया जाता है। यह समय साधना के लिए सर्वोत्तम रहता है। माँ के नवरं मंत्र का पूजन विशेषकर किया जाता है। दुर्गा सप्तशती का पाठ करें।
प्रतिपदा के दिन कलश स्थापना से पूर्व निम्न मंत्र का उच्चारण कर माँ का आशीर्वाद लेकर नवरात्रि पूजन की शुरुआत करें :
“ॐ जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।।”
प्रथम नवरात्रि – शैलपुत्री
द्वितीय नवरात्र – ब्रह्मचारिणी
तृतीय नवरात्र – चंद्रघंटा
चतुर्थ नवरात्र – कुष्मांडा
पंचमी नवरात्र – स्कंदमाता
षष्ठी नवरात्र – कात्यायनी
सप्तमी नवरात्र – कालरात्रि
अष्टमी नवरात्रि – महागौरी
नवमी नवरात्र – सिद्धिदात्री
कई लोग अष्टमी को कन्या पूजन करते हैं एवं कई नवमी पर बाल कन्याओं की पूजा के साथ नवरात्रि का उद्यापन करते हैं। बाल कन्याओं की पूजा की जाती है और उन्हे हलवे, पूरी , गिफ़्ट आदि दे कर नवरात्र व्रत का उद्यापन किया जाता है।
नीचे दिए गए विडीओ में जाने कलश स्थापना करने की विधि एवं साथ ही साथ कौन से दिन माँ के किस स्वरूप की करें पूजा एवं उन्हें कौन सा भोग लगाएँ या फिर कौन से फूल अर्पित करें की माँ हो प्रसन्न एवं करें आपकी हर मनोकामना पूर्ण।
कलश स्थापना मुहूर्त :
नवरात्रि की प्रतिपदा में कलश स्थापन किया जाता है। कलश स्थापना करने से साधक माँ एवं समस्त देवी देवताओं का आवहन करते हैं एवं उन्हें साक्षी मान कर पूजन करते हैं। इस बात का अवश्य ध्यान रखें की चित्रा नक्षत्र और वैधृति योग होने पर कलश स्थापना नहीं करनी चाहिए।
प्रातः काल 06:19 से 10:26 तक ( 4 घंटे 7 मिनट)
शुभ चौघड़िया : प्रातःकाल 07:20 बजे से 08:53 बजे तक
अभिजीत मुहूर्त्त : 11:30 से 12:18 बजे तक।
हालाँकि, इस वर्ष घटस्थापना प्रातः काल सूर्योदय से दोपहर 02:58 तक, प्रतिपदा तिथि में किया जा सकता है।
अष्टमी तिथि : 12 अप्रैल को सुबह 10:18 बजे से 13 अप्रैल को प्रातः ११:४१ बजे तक अष्टमी तिथि होगी, अष्टमी पूजन १३ अप्रैल को होगी।
संधि पूजन : 11:17 – 12:05 ( देवी चामुण्डा के हवन का मुहूर्त)
नवमी तिथि : प्रातः काल 11:41 बजे (१३ अप्रैल) से १४ अप्रैल प्रातः 9:15 बजे तक नवमी तिथि रहेगी ।
इसीलिए 13 अप्रैल (शनिवार) को महानवमी का व्रत होगा । अतः नवमी तिथि में ही नवरात्र सम्बंधित हवन-पूजन 13 अप्रैल को दोपहर मध्याह्न काल में करना उत्तम रहेगा। नवरात्र का पारण दशमी तिथि 14 अप्रैल दिन रविवार को प्रातः काल ९:३५ बजे के बाद किया जाएगा।
प्रभु श्री राम जयंती : 13 अप्रैल को रामनवमी का पुण्य पर्व भी मनाया जायेगा। पूजन का समय 11:06 – 13:38
अतः १३ अप्रैल को अष्टमी (महा गौरी पूजन) एवं नवमी (हवन) माँ चामुण्डा का पूजन रहेगा। राम नवमी एवं संधि पूजन को भी १३ अप्रैल को मनाया जाएगा।
© 2018 Nandita Pandey. All Rights Reserved | Design by Shreeya Web Solutions