दस महाविद्याओं में छठी महाविद्या “माँ छिन्नमस्ता” की जयंती इस वर्ष २८ अप्रैल, शनिवार को पड़ रही है।……… कैसे करें माँ के इस रूप की पूजा….. होगी सभी मनोकामना पूरी ,,,,

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छिन्नमस्ता जयंती 
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परशक्ति माँ की दस महाविद्याओं में छठी महाविद्या, माता छिन्नमस्ता की जयंती इस वर्ष २८ अप्रैल, शनिवार को पड़ रही है। माता छिन्नमस्ता के स्मरण मात्र से ही भक्तों के कष्ट दूर हो जाते हैं। 
 
परशक्ति माँ की महाविद्याओं का पूजन उन्ही को करना चाहिए जिन्होंने गुरु सिद्धि प्राप्त की हो। या फिर योग, ध्यान नियमित रूप से करते हों। माता की दस महाविद्याओं का वर्णन तंत्र शास्त्र में विधिपूर्वक वर्णित किया गया है एवं तंत्र साधना में इन्हें प्रमुख माना गया है।
 
माता की दस महाविद्याओं का पूजन ध्यान पूर्वरक करना चाहिए।  ऐसा इसीलिए माना जाता है क्योंकि यह शक्तीयाँ जागृत हो जाने पर सशक्त ऊर्जावान होती हैं एवं साधारण साधक इन्हें ठीक से ग्रहण नहीं कर पाते एवं उन्हें शारीरिक, मानसिक  कष्ट उठाना पड़ सकता है। गुरु के संरक्षण में की गयी साधना, साधक के अंदर ऊर्जा के सही संचार करने में सक्षम होती है। 
 
माता छिन्नमस्ता जल्दी प्रसन्न होने वाली महाविद्या हैं। यह सर्व सिद्धि को पूर्ण करने वाली अधिष्ठात्रि देवी हैं। इनके स्मरण मात्र से ही समस्त कष्टों का निवारण हो जाता है। कोर्ट-कचहरी के मामले हों या फिर किसी गवर्न्मेंट मामलों में फँसे हों, माता की विधिपूर्वक पूजन करने से आपको इससे मुक्ति मिलती है। 
 
जातक इस दिन माता के रूप का स्मरण कर उपवास करते हैं। इनका रूप विकराल है। इन्होंने साधना करते वक़्त ख़ुद ही का सर काट कर प्रसाद स्वरूप अर्पित किया। यह महाप्रलय का प्रतीक हैं एवं शिव शक्ति के विपरीत रति आलिंगन पर स्तिथ, माँ छिन्नमस्ता , माता त्रिपुरसुंदरी के रौद्र रूप का प्रतिनिधित्व करती हैं।  माँ के स्कंध से रक्त की तीन धाराएँ निकल रही हैं। इनमे से एक से स्वयं शीश से रक्त पान कर रही हैं, सेश दो धाराओं से अपने सानिध्य में रहने वाली योगिनी वर्णिनी एवं शकिनी को भी रक्त पान करा रही हैं। इसका तात्पर्य योग साधना से भी है एवं यह तीन धराएँ इड़ा, पिंगला एवं सुषुम्ना नाड़ी को भी दर्शाती हैं। माता की नाभि में योनि चक्र है एवं माता के गले में मुण्ड माला है एवं वह सर्प का जनेयु पहने हुए हैं। मुण्ड माला व्यक्ति के अंदर के दुशप्रभावों (अहं, ग़ुस्सा, ईर्ष्या, क्रोध आदि) को दर्शाती हैं जिसे साधक को मार गिराना होता है तभी वह सिद्धि में आगे बड़ सकता है।
साधक जब माँ से शांत स्वरूप का आवहन कर पूजन करता है तो माता उन्हें शांत स्वरूप में आकर उनके कष्टों का निवारण करती हैं। उनके रौद्र स्वरूप का आवहन करने से माता रौद्र रूप में आकर जातक के कष्टों का निवारण करती हैं । लेकिन उनकी साधना के वक़्त यह स्मरण रहे की उनके रौद्र स्वरूप की ऊर्जा को ठीक से संचारित करना हर किसी के बस में नहीं हैं। 
माँ छिन्नमस्तिका की  पौराणिक कथा :
 
माँ छिन्नमस्तिका के प्रादुर्भाव की दो कथा प्रचलित हैं। इनका वर्णन मार्कण्डेय पुराण एवं शिव पुराण में भी मिलता है। माना जाता है की जहाँ माँ के इस रूप का वास होता है वहाँ भगवान शिव उनके चारों तरफ़ वास करते हैं। इनका दूसरा नाम माँ चिंतपूर्णि भी है। 
 
एक कथा के अनुसार माता अपने रौद्र स्वरूप में दैत्यों का संहार कर माता ने विजय प्राप्त की तो उनकी दो सखियाँ जो युद्ध में परस्पर उनके साथ थी, भूख से सूखने लगीं। उनकी ऐसी स्तिथी देख कर माता ने स्वयं का शीश काट दिया। माँ का सर काट कर उनके बाएँ हाथ में जा गिरा। माता के सर काट जाने से रक्त की तीन धाराएँ स्फुटित हुई। उन्मे से दो धाराओं द्वारा उनके साथ रहने वाली योगिनियों की भूख शांति हुई एवं तीसरी धारा जो आकाश की तरफ़ बहने लगी, माता ने उसे स्वयं पी कर शांत किया। 
दूसरी प्रचलित कथा अनुसार, माता भवानी आनी दो सखियों के साथ वन में विचरण कर रही थीं। तदपश्चहात वह मंदाकिनी नदी में स्नान के लिए उतरीं। स्नान के पश्चात उनकी साथ रहने वाली उनकी दो सहेलियों को बहुत ज़ोर से भूख लगने लगी। वह माता से उनकी भूख शांत करने का अनुरोध करने लगीं। भूख इतनी तेज़ थी की दोनो का रंग इस अग्नि से काल पड़ गया, जब माता ने ऐसा होते देखा तो उन्होंने अपने सर को काट दिया। सर से रक्त की तीन धाराएँ बहीं जिससे उन्होंने अपनी सखियों का एवं स्वयं की भूख को शांत किया। 
व्रत की विधि : 
प्रातः काल स्वच्छ होकर  माता छिन्नमस्तिका का स्मरण कर , भवानी की मूर्ति को षोडशोपचार द्वारा पूजन करें। फल एवं लाल गुल्हड़ के फूल अर्पित करें। इसके बाद शिव शक्ति का आवहन कर दुर्गा सप्तशती का पाठ करना चाहिए। 
माँ के शांत रूप का आवहन कर निम्न मंत्र की एक माला यानी की १०८ बार उच्चारण करें। 
“श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं वज्र वैरोचनीयै हूं हूं फट् स्वाहा॥”
दिन भर माता के इस स्वरूप का ध्यान कर उनसे अपने संरक्षण का आशीर्वाद माँगे। संध्या को पूजन कर, ग़रीबों को भोजन आदि करा कर व्रत का पारण करें। 
 
अगर आप को सेहत से सम्बंधित परेशानी हो या फिर कोर्ट कचहरी के मामलों में फँसे हों , कोई गवर्न्मेंट कार्य सम्पन्न नहीं हो पा रहा हो, बेवजह की ऑफ़िस पॉलिटिक्स में फँसे हों तो आपको माँ का पूजन अवश्य करना चाहिए। माँ के स्मरण मात्र से ही जातक को उसकी परेशानियों से मुक्ति मिल जाती है। 

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