पापमोचीनी एकादशी :13.03.2018
चैत्र मास की कृष्ण एकादशी को पापमोचीनी एकादशी के रूप में भी मनाया जाता है । इस दिन व्रत रखने से सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिलती है एवं समस्त विघ्नों में विजय की प्राप्ति होती है ।
इस एकादशी के दिन नारायण भगवान के चतुर्भुज स्वरूप का पूजन अरचन किया जाता है । पापमोचीनी एकादशी के महात्म्य का विवरण स्कन्द पुराण में भी मिलता है । इस व्रत को करने से आपके कई जन्मों के पापों से आपको मुक्ति मिलती है एवं मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है । या व्रत समस्त विपदाओं से मुक्ति दिलवाने वाला व्रत है ।
पौराणिक कथा :
प्राचीन समय में चैत्ररथ नामक वन को वरदान मिला था । वह एक रमणीय स्थल के रूप में जागृत वन था । वहाँ कभी फूल पौधे मुरझाते नहीं धे एवं सभी जगह सदर फूलों से बस हुआ मनमोहक वन था । इस वन में देवलोक की अप्सराएँ वास करती थीं एवं अपना समय व्यतीत करती थीं । वहीं देवलोक से देव गान भी इस वन में विचारने आते थे । काम देव भी इस वन में ज़्यादा भ्रमण करते थे । इसी वन में ऋषि मेधावी भी अपनी तपस्या में लीन थे । शिव भक्त ऋषि मेधावी को शिवभक्ति में घोर तप में लीन देख कामदेव से रहा नहीं गया , ऋषि के पास में ही वीणा एवं गायन में लीन उन्होंने अप्सरा मंज़ुघोशा को देखा । अब तो शिव जी से रूष्ट कामदेव के अंदर ऋषि के शिव तप तो देख ईर्ष्या की भावना जागृत हुई , उन्होंने अपनी काम शक्ति से अप्सरा मंज़ुघोशा की भौवों को अपना धनुष बनाया एवं उनके नेत्रों की प्रत्यंचा छड़ा कर महर्षि तंद्रा को भेदा । महर्षि का ध्यान अप्सरा मंज़ुघोशा की मधुर वाणी से भंग हुआ । कामदेव के मोहन अस्त्र से प्रभावित हो , सामने अप्सरा मंज़ुघोशा की सुंदरता को देख वह मंत्रमुग्ध हो गए। अप्सरा मंज़ुघोशा की सुंदरता पर आसक्त हो वह मंज़ुघोशा के साथ भोग विलास में समय व्यतीत करने लगे । उस सुंदर वन में , कामदेव की काम शक्ति से प्रभावित होकर महर्षि मेधावी अपनी तपस्या को भूल गए । अप्सरा मंज़ुघोशा की प्रेमग्नि में ज्वलंत हो उनका समय बीतने लगा । ऐसे कई वर्ष बीतने के पश्चात अप्सरा मंज़ुघोशा ने वापस स्वर्ग लोक जाने की इच्छा ज़ाहिर की । ऋषि हर बार उनकी बात टाल देते । फिर एक दिन अप्सरा ने फिर वापस स्वर्ग लोक जाने की गुहार की और कहा की हे ऋषिवर अब तो लगबघ ५७ वर्ष हो चुके हैं , अब में यहाँ और नहीं रुक सकती , मुझे वापस जाना ही पड़ेगा । अप्सरा की इस बात से अचानक से महर्षि की तंद्रा टूटी , जैसे ही उन्हें एहसास हुआ की उन्होंने इस अप्सरा से आसक्त हो अपने तप को छोड़ दिया एवं उनके सारे तप का बल ख़त्म होता चला गया है तो वह क्रोधित हो गए। अपने क्रोध में उन्हें अप्सरा को श्राप दिया , की तुमने मेरे तप को भंग कर प्रेतों जैसी नीच हरकत की है , इसीलिए अब तुम पिशाचीनी बन कर रहोगी ।
अप्सरा घबरा गयी , उसकी बहुत विनती करने पर ऋषि का क्रोध शांत हुआ एवं ग्लानि भी हुई की इसमें इसका क्या दोष। ऋषि मेधावी ने उस अप्सरा से कहा की में अब श्राप तो वापस नहीं ले सकता , हाँ तुम्हें इस योनि से मुक्त होने का उपाय अवश्य बता सकता हूँ। अभी चैत्र माह की कृष्ण पक्ष की एकादशी पड़ेगी जिसे पापमोचीनी एकादशी के नाम से जाना जाता है । भगवान विष्णु की पूजा एवं व्रत रख कर यथाविधि पूजन करने से समस्त पापों से मुक्ति मिलती है । वही तुम्हारे इस कृत्य एवं श्राप से तुम्हें मुक्त कर पाएँगे ।
ऐसा सुन अप्सरा , भगवान विष्णु का ध्यान कर चैत्र कृष्ण एकादशी की प्रतीक्षा करने लगी । उसने ऋषि के कहे अनुसार व्रत रखा एवं भगवान की कृपा से अपने समस्त पापों से मुक्त हो अप्सरा के रूप में वापस देवलोक में वास करने चली गयी ।
इधर ग्लानि से युक्त महर्षि मेधावी अपने पिता ऋषि च्यवन के आश्रम में गए। शरीर से उनका तेज़ ख़त्म हो चुका था एवं वह वह वापस तप में लीन भी नहीं हो पा रहे थे । अपने पुत्र की ऐसी मलिन हालत देख कर उन्होंने महर्षि मेधावी से पूछा की उन्होंने ऐसा क्या किया की उनका समस्त तेज़ नष्ट हो गया है । महर्षि मेधावी ने अपनी दुखद अवस्था अपने पिता को सुनाई , ऐसा सुन कर ऋषि च्यवन ने उन्हें भी नारायण की शरण में जाने को कहा और बोला की एक अनारायण ही हैं जो उन्हें इन पापों से मुक्त कर सकते हैं । आने वाल चैत्र कृष्ण पक्ष को पापमोचीनी एकादशी पड़ रही है एवं अगर वह विधि पूर्वरक इस व्रत का पालन करते हैं तो नारायण की कृपा से उनके पाप दल जाएँगे एवं वह वापस तेज़ युक्त हो अपनी आगे की तपस्या में लीन होने के लिए सक्षम हो पाएँगे ।
अपने पिता की बात माँ कर ऋषि मेधावी ने भी इस व्रत का पालन किया , द्वादशी की प्रातः काल व्रत का पारण करते ही , भगवान विष्णु की कृपा से वह पापमुक्त हो वापस तेज़मायी हो गए एवं फिर से शिव भक्ति में लीन हो मोक्ष को प्राप्त हुए।
सांसारिक कर्मों का पालन करते हुए भी जो भी इस व्रत को रखता है , इशवार की कृपा से उसे ब्रह्म हत्या जैसे पापों से भी मुक्ति मिल जाती है ।
व्रत की विधि :
दशमी की रात्रि को फलाहार भोजन आदि से निवृत हो , नारायण का ध्यान रख कर व्रत रखें । एकादशी के दिन सुबह शुद्ध होकर नारायण की चतुर्भुज मूर्ति को स्नान आदि कर कर शोदशोपचार पूजन कर व्रत का संकल्प लें । इसके पश्चात “ओम नमो भगवते वासुदेवाए” मंत्र का १०८ बार पाठ करें , उसके बाद आप भागवत कथा का पाठ भी कर सकते हैं । पुरुष सुक्तम पड़ना भी अत्यंत शुभ होता है । रात्रि को हल्का फलाहार लेकर रात भर जागरण करें , भागवान विष्णु की महिमा का गान , भजन आदि करें । द्वादशी के दिन प्रातः काल उठ कर शुद्ध होकर नारायण पूजन के पश्चात , ग़रीबों को भोजन खिला कर व्रत को तोड़ें ।
जो भी रतजगा कर नारायण के ध्यान में लीन रहता है , ऐसा माना जाता है की उसके समस्त पापों का तो नाश होता ही है साथ ही में सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है ।
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