नृसिंह जयंती ( शनिवार, २८ अप्रैल २०१८ ) ,,,,, भगवान विष्णु के चौथे अवतार नृसिंह देव के प्रसन्न होने से ख़त्म होती हैं समस्त समस्याएँ ,,,,,, होते हैं सुख समृद्धि के एवं प्रगति के मार्ग प्रशस्त ,,,, !!

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नृसिंह जयंती ( २८ अप्रैल २०१८ ) 

बैसाख मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को नृसिंह जयंती के रूप में मनाया जाता है। इस वर्ष यह उत्सव शनिवार २८ अप्रैल २०१८ को पड़ रहा है  ।इस दिन विष्णु अवतार भगवान नरसिंह का उद्गम एक खम्बे को चीर कर हुआ था। नरसिह अवतार के रूप में भगवान आधे मनुष्य एवं आधे सिंह के रूप में जागृत हुए थे। विष्णु पुराण के अनुसार भगवान विष्णु के दसवतारों में नृसिंह देव को चौथा अवतार माना जाता है। 

पौराणिक कथा:

प्राचीन मान्यता के अनुसार ,  ऋषि कश्यप एवं उनकी पत्नी दिती की दो संतानें हुईं । ऋषि पुत्र होने के बावजूद दोनो ही संतानों में राक्षसी गुण की मात्रा प्रचुर भरी हुई थी। ऐसे में श्री हरी भगवान नारायण ने अपने वराह अवतार में उनके बड़े पुत्र हरिणयाक्ष का वध किया । अपने ज्येष्ठ भ्राता का वध देखकर हिरण्यकशिपु ने अपने को अजय बनाने की ठानी एवं सृष्टि के रचियता भगवान ब्रह्मा की तपस्या में लींन हो गया । घोर तप से प्रसन्न होकर हिरण्यकाशपु की इच्छाअनुसार ब्रह्माजी ने उसे वरदान दिया की उनके द्वारा रची गयी सृष्टि की किसी भी रचना से उसका वध नहीं होगा ,  ना वह पृथ्वी में मरेगा ,  ना ही आकाश में,  ना ही पाताल में,  ना मनुष्य द्वारा ना ही किसी जानवर द्वारा उसका वध हो पाएगा ।  ऐसा वरदान प्राप्त कर हिरयाणकशपु अपने को अजय समझ तीनो लोकों में त्राहि त्राहि मचाने लगा । 

हिरण्यकाशपु की संतान के रूप में प्रह्लाद ने जन्म लिया । प्रह्लाद भगवान हरी की पूजा में लीन रहता एवं हर समय उन्ही का नाम जपता रहता । हिरण्यकाशपु अपने पुत्र की इस भक्ति से परेशान होकर उस पर भी कई अत्याचार करने लगा । 

अत्याचार की कोई सीमा नहीं रही एवं अपने ही पुत्र को कई तरह से समाप्त करने को भी हिरण्यकाशपु ने कोशिश की,  लेकिन हर बार प्रह्लाद उन विपत्तियों से बच कर बाहर निकल जाता। प्रजा ने जब प्रह्लाद की भक्ति का ऐसा असर देखा तो वह भी नारायण की पूजा में लीन होने लगी । अब हिरण्यकाशपु के क्रोध की सभी सीमाएँ पार हो  गयीं । पास ही लगे एक खम्बे की तरफ़ देख कर हिरण्यकाशपु ने भक्त प्रह्लाद को ललकारा और कहा ,  अगर तुम्हारे भगवान सभी जगह व्याप्त हैं तो सामने क्यों नहीं आते ,  क्या तुम्हारे भगवान इस खम्बे से भी बाहर निकलकर तुम्हें बचा सकते हैं। 

भक्त  प्रह्लाद ने नारायण का नाम लेते हुए कहा की वह सब जगह व्याप्त हैं एवं इस खम्बे में भी व्याप्त हैं। ऐसा सुनते ही ,  हिरण्यकाशपु क्रोधित होकर ,  प्रह्लाद को मारने के लिए आगे बड़ा ,  एवं खम्बे पर ज़ोर से अपना गदा मारा । ऐसा होते ही अचानक खम्बे के टूटने की आवाज़ आयी एवं उसमें से श्री हरी नरसिह के रूप में प्रकट हुए । उन का भयानक शरीर आधे मनुष्य एवं आधे सिंह के रूप में था। उन्होंने ज़ोर से चिंघाड़ मारते हुए हिरयाणकशपु को उठाया एवं अपनी जाँघ में रखा,  और अपने तेज़ नाखूनों से उसके शरीर को फाड़ दिया । अजय हिरयाणकशपु का भगवान विष्णु ने अपने नरसिह अवतार के द्वारा वध किया । ब्रह्माजी की किसी भी रचना से परे उन्होंने नरसिह का रूप धरा ,  ना ही वह मनुष्य थे और ना ही जानवर ,  जँघा में वध ना ही पृथ्वी पर था ,  ना ही आकाश पर और ना ही पाताल पर । 

भक्त प्रह्लाद की तरह जो भी व्यक्ति इस दिन भगवान विष्णु के नरसिह  अवतार का पूजन करता है ,  भगवान उसे हर परेशानी से मुक्त करने के लिए किसी भी रूप में सामने आते हैं एवं उसकी समस्याओं का निदान होता है । 

 

व्रत की विधि 

प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त में उठ कर स्नान आदि कर शुद्ध होएँ एवं श्री नारायण के नरसिह अवतार का स्मरण कर उन्हें षोडशओपचार द्वारा पूजन करना चाहिए । फिर भगवान विष्णु के मंत्रोपचार द्वारा दिन भर ध्यान एवं पूजन करना चाहिए । भगवान को पीले या नीले वस्त्र एवं पीले फूल चड़ाने चाहिए । रोलि अक्षत , काजल, बरगद के पत्ते, धूप दीप से भी उनका आवाहन करना चाहिए । सरसों के तेल के दीपक से उनका आवाहन करें। प्रसाद में उड़द की खिचड़ी, पुआ आदि चड़ाएँ। 

आज के दिन शंख नाद अवश्य करना चाहिए । ऐसा करने से घर में बसी किसी भी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा की घर से निकासी होती है । घर के मुख्य द्वार पर एवं घर की चौखटों पर भी तिलक लगाना चाहिए एवं मन ही मन श्रीहरी को उनकी द्वारा दी गयी अपने जीवन में कृपा के लिए धन्यवाद भी देना चाहिए । 

भगवान नर सिह के गायत्री मंत्र का जप आज के दिन विशेष शुभ फल देता है । निम्न मंत्र को १०८ बार अवश्य पड़ें । 

ॐ वज्रनखाय विद्महेती क्ष्णदंष्ट्राय धीमहि तन्नो नरसिह प्रचोदयात

संध्या को पुरुष सूक्त का पाठ ,  आरती कर ,  ग़रीबों को भोजन खिला कर व्रत का पारण करना चाहिए । 

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